Saturday 13 July 2019

क्या कोई माँ बाप अपने बच्चों के जान के दुश्मन हो सकते है ???


शादी के बाद पति पत्नी अक्सर बच्चों के बारे में सोचते रहते है कि हमारे बच्चे होंगे।यदि बेटा हुआ तो ये नाम रखेंगे,बेटी हुई तो ये नाम रखेंगे।किसी की  भगवान प्रार्थना सुनता है और शादी के कुछ समय बाद ही उनके घर बच्चें की किलकारी गूंजने लगती है तो किसी के घर वर्षो वर्षो इंतजार करना पड़ता है,कई कई अस्पतालों की चक्कर काटते है तो कई मंदिरों की चौखट में मन्नतें  मांगते हुए देखे गए है, तो कई बाबाओ, साधुओ और तांत्रिको के चक्कर काटते है औलाद पाने के लिए।
जब औलाद होती है तो खुशियों की लहर दौड़ जाती है घर परिवार समाज में।
फिर बच्चो की छोटी बड़ी खुशी के लिये माँ बाप अपनी इच्छाओं को दिन प्रतिदिन दफन करते जाते है। क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चों की ख़ुशी में ही हमारी खुशी है। सभी माँ बाप अपने बच्चों के अपनी जान से ज्यादा प्यार करते है,तो फिर वो उन्ही बच्चों के  जान के दुश्मन कैसे हो सकते है।यदि जान के दुश्मन होते तो फिर पढ़ा लिखाकर अपनी खुशी को मारकर अपने बच्चों को क्यों खुश रखना चाहते है।

Sunday 23 June 2019

तभी घनश्याम राधा की,मुहब्बत भी अधूरी है।

मुहब्बत में मुलाकात बहुत जरूरी होती है,यदि मुलाकात नही हो तो दूरियां अपने आप होने लगती है। और जो एक दूसरे की बिना जी नही सकते थे वो एक दूसरे की बातें और बिताये हुए हसीन लम्हो की याद भी भूलने लगते है।
पौरणिक मान्यता के अनुसार श्री कृष्ण और राधा एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे किंतु राधा जी कभी भी कृष्ण से मिलने नही आती थी, शायद इसीकारण उनकी मुहब्बत भी अधूरी मानी जाती है।इसलिए जिसे आप प्यार मुहब्बत करते  हो उनसे समय समय पर अवश्य मिले ताकि आपकी मुहब्बत की कहानी पूरी हो सके।

Saturday 22 June 2019

कैसे हुआ प्यार करने के तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन!!

समय के परिवर्तन के साथ साथ आज के ज़माने में प्यार करने से लेकर प्यार के इजहार करने तक के तरीकों में भी काफी परिवर्तन हो रहे है। हमारे पूर्वज भी प्राचीन समय से इश्क,मुहब्बत और प्यार करते आ रहे है,किन्तु उनके इजहार का तरीका बहुत अलग हुआ करता था।हमारे दादाओ के समय मे लड़के लड़कियों किसी भी सार्वजनिक जगह में जैसे गांव ने लगने वाले मेलो में पूजन,वैवाहिक और यज्ञ के कार्यक्रमों में अपने दिलदार से मिलकर एकांत में इश्क़ का इजहार करते थे, और फिर अगली मुलाकात में मेले से ही प्रेमिकाओं के लिए प्यार की निशानी चुनरी,कंगन,साड़ी,बालो का गज़रा और छल्ला लेकर देते थे,इसी प्रकार बहुत बहुत दिनों बाद मिलकर प्यार करते थे।फिर उनके बाद कि पीढ़ियो के समय मे पढ़ाई हेतु स्कूल चालू हो चुके थे तो प्यार और इजहार करने में थोड़ी बहुत सुविधा हो चुकी थी।और  लड़के लडकिया कई कई दिन तक ईशारों ही ईशारों में प्यार और दीदार करते रहते थे,बहुत दिनों तक ऐसा करने में जब लड़के लड़कियों को यकीन हो जाता था कि सामने वाले के मन मे भी कुछ प्यार है तब जाकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपने दिल की बात खत में लिखकर रखते थे,कई बार उनकी सहेलियों के द्वारा प्रेम पत्र अपनी प्रेमिका के पास भेजा जाता था। या फिर  किसी बहाने से उनकी क़िताब में खत और ग़ुलाब का फूल रख दिया जाता था। यदि कोई लड़की प्यार को स्वीकार नही करती थी तो लड़का अपने प्यार का यकीन दिलाने के लिए अपने खून से खत लिखता था।इसके बाद के  समय मे तो प्यार इश्क मुहब्बत में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आया। और इस दौर में  लड़के लड़कियां कॉलेज  में साथ साथ पढ़ाई करते थे। और  प्यार और इजहार बहुत आसानी से कर लिया करते थे,और अक्सर कॉलेज से बंक मारकर लैला मजनू बनकर बगीचे और सिनेमा घरो में अपना प्यार का समय बिताते थे।समय के हिसाब से और भी परिवर्तन हुए अब लड़के लडकियां अक्सर हाई एजुकेशन के लिए अपने घर परिवार से हजारों किलोमीटर दूर होस्टल में रहते है और चौबीस घण्टो स्मार्ट फोन और सोशल मीडिया से घिरे रहते है, एक साथ कई कई लड़के लड़कियों से चैटिंग करते रहते है , चैटिंग चैटिंग में हो प्यार का इजहार करते है, मान जाए तो ठीक है नही तो कहते यार में तो मज़ाक कर रहा था हम तो सिर्फ अच्छे दोस्त है और दोस्त रहेंगे। यहां तक आजकल लड़के लडकिया लिव इन रिलेशनशिप में भी बहुत रहते है, और एक दूसरे के शारीरिक आवश्यकताओं को पूरी करके फिर एक दूसरे को भूलकर अपनी अपनी जीवन की नई शुरुआत कर लेते है। आज के युग मे प्यार की फीलिंग ही नही रही है।

Friday 21 June 2019

बिहार में बच्चो की मौत से जनसंख्या "घटने" पर भी "योग" दिवस मना रहा है देश??

बिहार में 150 से ज्यादा बच्चों के परिवार से मर जाने और देश की जनसंख्या इतनी *घट* जाने पर भी देश धूमधाम से *योग* मना रहा है।
बिकाऊ मीडिया योग की फ़ोटो से अपनी  टीआरपी को कई *गुना* बढ़ा रहा है।
और मृतक बच्चो की संख्या में टीआरपी से *भाग* देकर उनकी संख्या को *शेष* बता रहा है।
हमारे प्रधान सेवक धवन के अंगूठे में चोट लगने और विश्वकप से बाहर होने पर ट्वीट कर शोक व्यक्त करते है।
और दिल्ली में जाकर पांच सितारा होटल में सभी सांसदों के लिए भव्य रात्रि भोज या यूं कहें तो  मरने वाले बच्चों के आत्मा शांति हेतु मृत्यु भोज का आयोजन कर रहे। हो सकता है कि शीघ्र पिंडदान हेतु विदेशी यात्रा मैं भी उन्हें जाना पड़े।

पिछले कई सालों से हर वर्ष चमकी के कारण कई बच्चों मौत की नींद सो जाते है  और कई परिवार के लाडले उनसे हमेशा हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं किन्तु आज तक कोई उचित उपचार नही निकाल पा रहा हमारा देश। जबकि चाँद में जीवन की खोज कर रहा है अब हमारा  देश।

दुखी मन है मेरा,

कवि सुरेन्द्र "भोला"
सूरत 9727740048

Thursday 20 June 2019

तुम्हारे नाम लिखने से तो पत्थर तैर जाते है।

आप सभी को प्रणाम।


आज का विषय है कि आखिर कलयुग में परमपिता पिता परमेश्वर  मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम  जी क्यों सभी लोगो के दुखों का निवारण नही करते??

जबकि हमारे ग्रंथो में लिखा है कि शबरी की सच्ची लगन प्यार,और भक्ति के कारण प्रभु ने शबरी की जूठे बेर तक खा लिए थे,और शबरी का उद्धार किया।

इसी प्रकार एक प्रसंग में लिखा है कि अहिल्या जो पिछले जन्म में अभिशाप के कारण एक शिला बन गई थी, अहिल्या की उद्धार के लिए प्रभु उस शिला तक गए और अपने श्री चरणों के द्वारा उस शिला को पुनः नारी बनाकर उद्धार किया।

ऐसे बहुत से  प्रसंग है जिनमे भगवान अपने भक्तों के उद्धार के लिए उनकी सच्ची लगन के कारण उन्हें दर्शन दिए।

फिर अखिल कलयुग मैं ऐसा क्या हो रहा है कि भगवान इंसानों का उद्धार दुख दर्द कष्ट भूख गरीबी बीमारी नही मिटाते है।

इसका मुख्य कारण मनुष्य का अहंकार होता है कि मैं हूँ तो सब  कुछ है मेरे सिवा  दुनिया मे कुछ नही।

जबकि हमने देखा है कि कलयुग में भी जिसने अपने अहंकार को छोड़कर अपने को प्रभु का दास  सेवक  बना लिया प्रभु ने उनका नाम अमर कर उनका उद्धार किया जैसे रसखान मीरा बाई और बहुत से भक्त है।

दुनिया मे केवल जिसने अपने को प्रभु का दास बना लिया उसका उद्धार निश्चित है क्योंकि जिनके  पत्थरो में सिर्फ नाम लिखने से पत्थर भी पानी मे तैर जाते है तो फिर उनकी सच्ची भक्ति करने मे भला कैसे मनुष्य का उद्धार नही होगा।

यह सब लिखने के बाद मैंने इसका सारांश चार पंकितयों में लिखा यदि अच्छा लिखा हूँ तो अपना आशीर्वाद दीजिये।